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आरक्षण

सबसे ज्यादा संवेदनशील विषय आपके मुंह से आरक्षण शब्द निकला कि लोग चौकन्ने हो जाते हैं। पूर्ण समर्थन की बात कही तब तो ठीक है किंतु उससे इतर कुछ भी बोला तो लोग राशन पानी लेकर आपके ऊपर चढ़ जायेंगे, इनमें सिर्फ आरक्षित वर्ग के लोग नहीं होंगे बल्कि बुद्धिजीवी, समाज सुधारक, पत्रकार, फेसबुकिए और राजनीतिक दल भी होंगे... हो सकता है आप आरक्षण में कोई संशोधन सुधार और सकारात्मक परिवर्तन की बात कर रहे हों। पर लोग ये सुनेंगे समझेंगे कि आप आरक्षण को खतम करने की बात कर रहे हैं, आपके विचार कितने भी तार्किक और व्यवहारिक क्यों न हों पर लोग सिर्फ विरोध ही करेंगे बस... आरक्षण.. भारतीय संविधान की सबसे अनुपम, प्रभावी और व्यवहारिक व्यवस्था है। जिसे कमजोर और पिछड़े लोगों को सक्षम बनाने के लिए संविधान में शामिल किया गया है। इस व्यवस्था का एकमात्र उद्देश्य यही है कि देश और समाज के पिछड़े और कमजोर लोगों को सक्षम बनाकर मुख्य धारा में शामिल किया जा सके... तो क्या आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हम आरक्षण के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर सके हैं और यदि प्राप्त किया भी तो कितना पाया है अनुपात कितना है और खोया कितना ह

आरक्षण

      सामान्य वर्ग के लोग किसी मुद्दे पर इतना ज्ञान इसलिए झाड़ लेते हैं क्योंकि उन्हें कभी भी सामाजिक बहिष्कार का सामना नहीं करना पड़ा ...धनाभाव होना या गरीब होना अलग बात है और अछूत कहलाना अलग....       घर पर खाने को भी न होने और भीख मांगने पर भी ब्राम्हण सम्मानीय रहा है...क्षत्रिय और वैश्य वर्ग को भी कभी सामाजिक बहिष्कार का सामना नहीं करना पड़ा...       आरक्षण का विचार ही यहां से जन्म लेता है कि जिन्हे हमने संसाधनों के उपभोग और व्यक्तित्व विकास के साधनों से सदियों तक वंचित रखा उन्हें अब मुख्य धारा में लाने के लिए कुछ सकारात्मक अवसर प्रदान किए जा सकें...       आर्थिक आधार पर आरक्षण सबसे ज्यादा आतार्किक विचार है...जब जाति जैसे स्पष्ट आधार पर हम आरक्षण को हम सही ढंग से लागू नहीं कर पाए हैं और आरक्षण का लाभ वास्तविक हकदार को नहीं दिला पाए हैं तो आर्थिक जैसे भ्रामक आधार तो भूल ही जाएं यही बेहतर है...आर्थिक आधार पर बनने वाले बी पी एल कार्ड की सच्चाई किसी से छुपी नहीं है...       तो क्या आरक्षण व्यवस्था में किसी तरह के संशोधन या परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है????       मुझे लगता हैं कि स्वतंत्